रक्षाबंधन पर निबंध | Essay on Raksha Bandhan in hindi | Essay writing in hindi
0Tech beginner officialJuly 25, 2022
रक्षाबंधन
प्रस्तावना : रक्षाबंधन हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है । यह त्योहार
भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है । इस दिन बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं
और अपने भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं । भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है ।
यह राखी का त्योहार संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है । हम यह पर्व सदियों से मनाते चले आ
रहे हैं । आजकल इस त्योहार पर बहनें अपने भाई के घर राखी और मिठाइयाँ ले जाती हैं । भाई राखी बाँधने के
पश्चात् अपनी बहन को दक्षिणा स्वरूप रुपए देते हैं या कुछ उपहार देते हैं । इस प्रकार आदान-प्रदान
से भाई-बहन के मध्य प्यार और प्रगाढ़ होता है । सन् 1535 में जब मेवाड़ की रानी कर्णावती पर बहादुर
शाह ने आक्रमण कर दिया, तो उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर मदद की
गुहार की थी । क्योंकि रानी कर्णावती स्वयं एक वीर योद्धा थीं इसलिए बहादुर शाह का सामना करने के लिए
वह स्वयं युद्ध के मैदान में कूद पड़ी थीं, परंतु हुमायूँ का साथ भी उन्हें सफलता नहीं दिला सका ।
इस दिन सभी नए-नए कपड़े पहनते हैं । सभी का मन
हर्ष और उल्लास से भरा होता है । बहनें अपने
भाइयों के लिए खरीदारी करती हैं, तो भाई अपनी बहनों के लिए साड़ी आदि खरीदते हैं और उन्हें देते
हैं । यह खुशियों का त्योहार है । हमारे हिन्दू समाज में वो लोग इस त्योहार को नहीं मनाते, जिनके
परिवार में से रक्षाबंधन वाले दिन कोई पुरुष-भाई, पिता, बेटा, चाचा, ताऊ, भतीजा-मर जाता है ।
इस पुण्य पर्व पर किसी पुरुष के निधन से यह त्योहार खोटा हो जाता है । फिर यह त्योहार पुनः
तब मनाया जाता है जब रक्षाबंधन के ही दिन कुटुंब या परिवार में किसी को पुत्र की प्राप्ति हो ।
हमारे हिन्दू समाज में ऐसी कई परंपराएँ हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं । उन्हें समाज आज भी
मानता है । यही परंपराएँ हमारी संस्कृति भी कहलाती हैं । परंतु कई परंपराएँ, जैसे – बाल विवाह,
नर-बलि, सती प्रथा-आदि को कुरीति मानकर हमने अपने जीवन से निकाल दिया है; परंतु जो परंपराएँ
हितकारी हैं, उन्हें हम आज भी मान रहे हैं । राखी (रक्षाबंधन) का इतिहास और कुछ अन्य तथ्य
पौराणिक :- राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता । लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता
है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे । भगवान इन्द्र घबरा कर
बृहस्पति के पास गये । वहां बैठी इन्द्र की पत्नी
इंद्राणी सब सुन रही थी । उन्होंने रेशम का धागा
मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया । संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का
दिन था । लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे।
उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है । यह धागा धन, शक्ति, हर्ष
और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है । इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है,
जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने
अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी
संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था । स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में
वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है । कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा
बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान
विष्णु से प्रार्थना की । तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा
माँगने पहुँचे । गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी । भगवान ने तीन पग में सारा
आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में
भेज दिया । इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि
राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है । कहते हैं एक
बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन
ले लिया । भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया । उस उपाय का पालन
करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति
भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं । उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी । विष्णु पुराण के एक प्रसंग
में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को
ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था । हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है ।
ऐतिहासिक :- राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में
रेशमी धागा भी बाँधती थी । इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा । राखी के
साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है । कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा
मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली । रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ
को राखी भेज कर रक्षा की याचना की । हुमायूँ ने
मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़
पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की ।
एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना
मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया । पुरूवास ने युद्ध के दौरान
हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया ।
महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं
सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का
त्योहार मनाने की सलाह दी थी । उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप
हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं । इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी
बाँधने के कई उल्लेख मिलते हैं । महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित कृष्ण और द्रौपदी का एक और
वृत्तान्त भी मिलता है । जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई
। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी । यह श्रावण मास की पूर्णिमा
का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में
चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया । कहते
हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई ।
साहित्यिक:- अनेक साहित्यिक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबन्धन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है ।
इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबन्धन जिसका 1991 में 18वाँ
संस्करण प्रकाशित हो चुका है । मराठी में शिन्दे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव
बर्गे ने भी एक नाटक की रचना की जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबन्धन । पचास और साठ के दशक में
रक्षाबन्धन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा । ना सिर्फ़ ‘राखी’ नाम से बल्कि ‘रक्षाबन्धन’
नाम से भी कई फ़िल्में बनायीं गयीं । ‘राखी’ नाम से दो बार फ़िल्मि बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार
सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्मय को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान,
प्रदीप कुमार और अमिता । इस फ़िल्मन में राजेंद्र कृष्ण़ ने शीर्षक गीत लिखा था- “राखी धागों का
त्यौ्हार” । सन 1972 में एस.एम.सागर ने फ़िल्मत बनायी थी ‘राखी और हथकड़ी’ इसमें आर.डी.बर्मन का
संगीत था । सन 1976 में राधाकान्त शर्मा ने फ़िल्मा बनाई ‘राखी और राइफल’ । दारा सिंह के अभिनय वाली
यह एक मसाला फ़िल्मक थी । इसी तरह से सन 1976 में
ही शान्तिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर
एक फ़िल्म ‘रक्षाबन्धन’ नाम की भी बनायी थी । महाभारत में राखी - महाभारत में भी रक्षाबंधन के
पर्व का उल्लेख है । जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता
हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी ।
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के
लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी । यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का
दिन था । कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था । रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर
एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है । उपसंहार : आज यह त्योहार हमारी संस्कृति की
पहचान है और हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है । लेकिन भारत में जहां बहनों के लिए इस विशेष
पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं ।
आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्योंकि उनकी बहनों को उनके
माता-पिता ने इस दुनिया में आने ही नहीं दिया । यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस
देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है
वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते
हैं । यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं ।
अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है एक दिन देश में लिंगानुपात
और तेजी से घटेगा और सामाजिक असंतुलन भी ।